अमेरिकन नीतियों को तवज्जो देते दक्षिण पूर्वी एशियाई देश और चीन के साथ इन देशों के बदलते मायने
Written By अनुभा जैन, लेखिका पत्रकार on Tuesday, November 21,2021- 5 comments
चीन और अमेरिका के बीच कांटे की टक्कर है, जहां अमेरिका दक्षिण पूर्वी एशिया देशों के हितों को प्रभावित कर रहा है अपनी सॉफ्ट पावर का फायदा उठाते हुये। वहीं चीन के खिलाफ एंटी चाइनीज भावनाएं बल ले रही हैं जिसके चलते ये देश अमेरिका को प्राथमिकता देने लगे हैं।
BOX ITEM: दक्षिण पूर्व एशिया में पूर्वी भारत से लेकर चीन के करीब 11 देश शामिल हैं और जो की मेनलैंड और आईलैंड जोन्स में विभाजित किये जा सकते हैं। मेनलैंड की बात करें तो इसमें एशियन कॉन्टिनेंट का विस्तार करने पर बर्मा, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम आते हैं। साऊथ और साऊथ ईस्ट एशिया रीजन में दक्षिण व दक्षिण पूर्वी देश जैसे नेपाल, भारत, पाकिस्तान, म्यंमार, वियतनाम, थाइलैंड, इंडोनेशिया, फिलिपिंस और सिंगापुर आते हैं।
2003 से 2005 के मध्य आसियान ASEAN -एसोसियेशन ऑफ साऊथ ईस्ट एशियन नेशन्स और चीन के संबंधों को और बेहतर बनाने के लिये, शांति और सौहार्द के सामरिक साझेदारी बढाने के साथ विभिन्न स्तर पर 16 क्षेत्रों की 46 प्रकियाओं को विकसित करने पर बल दिया गया। पूर्व प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प के निर्देशन में चल रही अमरीकी व्यापार नीति के प्रतिक्रियास्वरूप, मुख्य तौर पर कोविड-19 महामारी के शुरूआती वर्षों में चीन मुख्यतया दक्षिण पूर्वी एशिया देशों की तरफ व्यापार के लिये रूख करने लगा। 2020 के शुरूआती वर्षों में आसियान और चीन के मध्य व्यापार हर वर्ष 6 प्रतिशत बढकर अमरीकी डॉलर 140 बिलियन तक पहुंच गया, जो कि चीन के ट्रेडिंग वॉल्यूम का 15 प्रतिशत था। चीन का वियतनाम और इंडोनेशिया से भी आयात हर वर्ष बढते हुये 13 से बढकर 24 प्रतिशत हो गया। इसके अतिरिक्त चीन आसियान देशों के साथ कृषि व कृषि उपकरणों और पर्यटन क्षेत्रों में भी व्यापार की संभावनायें तलाश रहा है ताकि चीन को ओद्योगिक क्षेत्र में पोस्ट कोविड19 के कंसंप्शन एक्सपंेडिचर व अन्य खर्चों को वहन करने में सहुलियत रहेगी।
आसियान देशों में डिजिटल कनेक्टिविटी को बढावा देने में भी चीन अपनी पैनी नजर बनाये हुये है। अलिबाबा और हुवाई जैसी कंपनियां आसियान देशों के साथ ऑनलाइन व्यापार और नवीनतम तकनीकों को बढाने पर विशेष बल दे रहीं हैं। केंद्र और दक्षिण पूर्वी एशिया में तकनीकि आधारिक संरचना के सुदृढिकरण हेतु चीन डिजिटल सिल्क रोड के माध्यम का प्रयोग कर रहा है।
कुछ समय पहले तक म्यंमार चीन से संबंध तोडने का प्रयास कर रहा था जिसमें 2011 में 3.6 बिलियन डॉलर का बांध परियोजना को वापिस लेना और अमेरिका द्वारा बढ़ावा दिये जाने वाले रिफॉर्मस का क्रियान्वयन शामिल था। पर बाद में पडोसी देशों के तौर पर चीन को साथ देने के अलावा म्यंमार के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। आज लंबे तनाव के बावजूद म्यंमार आर्थिक और सामरिक हितों में चीन पर निर्भर करता है। अमेरिका के साथ अच्छे संबंध बरकरार करते हुये मलेशिया व थाईलैंड चीन को दिये जाने वाली अपनी प्राथमिकता को छुपाने को कुछ प्रयास करते हैं। पर इसके बावजूद थाईलैंड ने अपने सैन्य रिलेशन चीन के साथ मजबूत किये। एंटी चायना विचारधारा के बावजूद चीन थाई रिलेशन को चुनौती देना बेहद असंभव प्रतीत होता हैै। फिलीपिंस, सिंगापुर, इंडोनेशिया देश अमेरिका और चीन के मध्य अपने रिश्तों को लेकर एक संतुलन कायम कर आगे बढ़ रहे हैं। पर वियतनाम और चीन के आपसी कलह के चलते अमेरिका इस बात का फायदा उठा सकता है।